Robert Oppenheimer: परमाणु ऊर्जा का जनक, ओपेनहाइमर, एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और उपक्रम कर्ता थे, जिन्होंने नेशनल लैबोरेटरी ऑफ अप्लाइड फिजिक्स (National Laboratory of Applied Physics) में अपने साथी वैज्ञानिकों के साथ अद्वितीय काम किया। उन्होंने 1945 में अमेरिका के लॉस एलामोस, न्यू मेक्सिको में परमाणु बम की प्रोटोटाइप विकसित की, जिसे “गैडेनिंग” नामक परियोजना के तहत शुरू किया गया था।

Robert Oppenheimer

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पहला परमाणु बम का परीक्षण:

Robert Oppenheimer : 1960 के दशक में ओपन हैमर ने एक इंटरव्यू में बताया कि एटम बम के धमाके के बाद उनके मस्तिष्क में हिंदू धर्म ग्रंथ गीता का एक श्लोक याद आया था | ओपन हैमर ने दिए इंटरव्यू में उन्होंने गीता का जिक्र करते हुए कहा मैं “अब कॉल हूं जो दुनिया का नाश करता हूं ” वह गीता के 11 अध्याय के 32वें श्लोक का जिक्र कर रहे थे |

जहां श्रीकृष्ण कहते हैं, “काल: अस्मि लोकक्षयकृत्प्रविद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त:।।”

गीता के श्लोक ११.३२ में भगवान कृष्ण अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन कराते हैं, जिससे अर्जुन को भयभीत महसूस होती है और उन्हें भगवान की अमूर्त रूप की प्राप्ति होती है। Robert Oppenheimer ने यह उल्लेख किया कि जब वे परमाणु बम के परीक्षण के समय उनके दिल के संदर्भ में गीता के श्लोक का स्मरण आया तो उन्हें भयभीत का अनुभव हुआ।

परमाणु बम परीक्षण के बाद उदासी:

परमाणु परीक्षण के बाद वे काफी उदास रहने लगे थे | वह सोच रहे थे की उन्होंने परमाणु बम बनकर कोई गलती तो नहीं कर दी ? क्योंकि इस परमाणु बम से तो सारी दुनिया का विनाश हो सकता है| परमाणु बम बनाने की प्रेरणा भी उन्हें गीता से ही मिली थी| जब जापानियों के साथ विश्व युद्ध चल रहा था, तब वह सोच रहे थे कि इस परमाणु बम से मासूम और गरीब लोगों की जान भी जाएगी और एक पूरी सभ्यता नष्ट हो सकती है| जब नागासाकी पर पहला परमाणु बम गिराया गया, तब एक पूरा शहर जल गया और उसकी गूंज 160 किलोमीटर तक सुनाई दी| 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर परमाणु बम “लिटिल” बॉय गिराया गया था| तीन दिनों बाद अमेरिका ने नागासाकी शहर पर फैट मैन परमाणु बम गिराया |

परमाणु बम का प्रभाव :

इस परमाणु बम की गंज 160 किलोमीटर तक सुनाई दी| जिसमें कई घरों के शीशे टूट गए| जमीन में कंपन और वाइब्रेशन 160 किलोमीटर तक महसूस किया गया| Robert Oppenheimer को अपने इस परमाणु बम की सफलता पर दुख भी था और खुशी भी थी| दुख उन्हें इस बात का था कि उनके इस परमाणु बम के आविष्कार से कई मासूम लोगों की जान चली गई और खुशी इस बात की थी कि उन्होंने ऐसा आविष्कार किया है जो अभी तक किसी ने नहीं किया| उन्होंने कहा कि इस आविष्कार को हमें मानव सभ्यता को बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए ना कि नष्ट करने के लिए|

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Robert Oppenheimer का जन्म :

Robert Oppenheimer का जन्म सन 1904 में न्यूयॉर्क में हुआ था | उनके पिता कपड़ों का कारोबार करते थे| कपड़ों के कारोबार के कारण उनका परिवार रईस बन गया था| उनका परिवार न्यूयॉर्क के अप्पर वेस्ट साइड में एक बड़े से अपार्टमेंट में रहता था| उनके घर में नौकरानियां और ड्राइवर काम करते थे| एक अमीर परिवार में पैदा होने के बावजूद ओपन हैमर बिगड़े बच्चे नहीं थे|

स्कूल के दिनों की एक दोस्त जेन डिडिशाइम, ओपेनहाइमर को एक ऐसे बच्चे के तौर याद करती थीं, जो ‘बहुत जल्दी शर्मा जाता था’ जो ‘बहुत दुबला पतला, गुलाबी गालों वाला…बेहद शर्मीला’ था, मगर ‘बहुत अक़्लमंद’ भी था.

Robert Oppenheimer
संस्कृत सीखी : गीता पढने के लिए

बर्कले यूनिवर्सिटी कैलिफोर्निया में Robert Oppenheimer ने ब्रह्मांड की करने और परमाणु विखंडन को लेकर कई रिसर्च किया | वह गीता के श्लोक बड़ा करते थे और उसे लोगों से ब्रह्मांड के रहस्य को जानने की कोशिश करते थे |

गीता में उन्होंने एक श्लोक पढ़ा जिसमें लिखा था ” “मैं कई सूर्य किरणों से भी तेज हूँ” – यह गीता का श्लोक ११.१२७ है, जो भगवान कृष्ण के द्वारा अर्जुन को अपने विराट रूप का वर्णन करते समय कहा गया था। इस श्लोक में भगवान कृष्ण अपने विश्वरूप की महानता का वर्णन करते हैं और अपने अद्वितीय और अमूर्त स्वरूप का उल्लेख करते हैं। यह श्लोक उनकी अद्भुत और अनन्य स्वरूप की महत्वपूर्ण उपलब्धि को संकेतित करता है।”

उसे दौर में Robert Oppenheimer एक अकेले व्यक्ति थे, जो गीता के श्लोक का अर्थ समझते थे और उसे अपने दैनिक जीवन में प्रयोग में लाते थे |1930 के शुरुआती बरसों में जब ओपेनहाइमर अपना अकादेमिक करियर मज़बूत कर रहे थे, तब वो चुपके चुपके साहित्यिक विषयों की पढ़ाई भी कर रहे थे.

यही दौर था, जब उन्होंने हिंदू धर्मशास्त्रों की तलाश की. उन्होंने गीता के अनुवाद के बजाय उसके मूल स्वरूप में पढ़ने के लिए संस्कृत सीखी.

समस्या सुलझाने में गीता का सहारा :

कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत की लड़ाई की कहानी पर केंद्रित भगवद् गीता ने ओपेनहाइमर को एक दार्शनिक सोच की बुनियाद दी.

बाद में, जब प्रोजेक्ट वाय के दौरान वो नैतिक दुविधा के शिकार थे, तब ओपेनहाइमर ने उस दुविधा से उबरने के लिए गीता का ही सहारा लिया था. गीता में कर्म और कर्तव्य पर ज़ोर दिया गया है और कहा गया कि, ‘कर्म किए जा फल की चिंता मत कर ऐ इंसान!

उन्होंने लिखा कि गीता के श्लोक को युद्ध के मैदान में आसानी से समझा जा सकता है|

परिवार और नई प्रेरणा :

Robert Oppenheimer ने 1940 में जीव वैज्ञानिक कैथरीन ‘किटी’ हैरिसन से शादी कर ली थी. जो बाद में उनके प्रोजेक्ट वाय का हिस्सा बनी थीं. उस प्रोजेक्ट में कैथरीन, रेडिएशन यानी परमाणु धमाके के बाद पैदा होने वाले विकिरण के ख़तरों पर रिसर्च किया करती थीं.

सितंबर 1942 तक, ये साफ़ हो गया था कि परमाणु बम बनाया जा सकता है. इसमें कुछ योगदान तो ओपेनहाइमर की टीम का भी रहा था. इसके बाद परमाणु बम बनाने की योजना पर ठोस रूप से काम शुरू हो गया था.

युद्ध के बाद Robert Oppenheimer का नजरिया बदल गया और उन्होंने परमाणु को विनाशकारी और मानव सभ्यता के लिए खतरनाक बताया| राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि ” ऐसा लगता है मेरे हाथ खून से रंगे हुए हैं यानी में मासूम लोगों की मौत का जिम्मेदार हूं” | राष्ट्रपति ने कहा कि “खून से रंगे हाथ मेरे है, परमाणु बम का इस्तेमाल कैसे करना है यह मुझ पर छोड़ दो | तुम इन सबके लिए अपने आप को जिम्मेदार मत समझो “

जीवन का अंतिम समय :

62 साल की उम्र में सन 1967 ओपेन हाइमर की मौत गले के कैंसर से हो गई थी | ओपेन हाइमर को कविता लिखने का बहुत शौक था | जीवन के अंतिम पड़ाव में भी ओपेन हाइमर ने कविता लिखी | उन्होंने कहा था कि कविता के “उलट विज्ञान यह सीखने का नाम है कि कोई भी गलती दोबारा ना की जाए” |

Robert Oppenheimer का जीवन विज्ञान और आध्यात्मिक का संगम रहा | जहां एक और उन्होंने श्रीमद् गीता पढ़ी और उस गीता के उपदेशों को अपने जीवन में सम्मिलित करने का प्रयास किया |

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