वैकुंठ एकादशी : भारतीय सांस्कृतिक कैलेंडर में वैकुंठ एकादशी एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है, जो भक्तों को देवों के दरबार में पहुंचाने का मार्ग प्रदान करता है। इस त्योहार का आयोजन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर होता है, जिसे ‘उत्तरायणी एकादशी’ भी कहा जाता है। इस दिन हिन्दू धर्म के अनुयायियों ने भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का आचरण करते हैं ताकि वे स्वर्ग में वैकुंठ प्राप्त कर सकें।

वैकुंठ एकादशी

वैकुंठ एकादशी: दिव्य पथ की ओर एक कदम

वैकुंठ एकादशी हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है। यह एकादशी मार्गशीर्ष महीने (अगस्त-सितंबर) के शुक्ल पक्ष में आती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु वैकुंठ द्वार से बाहर निकलकर पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।

वैकुंठ एकादशी को कई नामों से जाना जाता है, जैसे मोक्षदा एकादशी, हरिबोधनी एकादशी, और उत्पन्ना एकादशी। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है

वैकुंठ एकादशी के महत्व:
  1. मोक्ष की प्राप्ति: इस तिथि को विशेष माना जाता है क्योंकि इसे भगवान विष्णु के समर्थन में किया जाता है, जिन्हें वैकुंठ, भगवान का निवास स्थान, प्राप्त है। भक्त इस दिन व्रत रखकर अपने पापों से मुक्त होने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति की कड़ी मेहनत के माध्यम से सुनिश्चित होती है।
  2. धर्मिक क्रियाएं: वैकुंठ एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। भक्त विष्णु सहित उनके सभी अवतारों की पूजा करते हैं और धार्मिक क्रियाएं आचरण करते हैं जैसे कि व्रत, जागरण, आरती, भजन गायन, और साधु-संतों के सत्संग का आयोजन।
  3. संस्कृति में विशेष स्थान: भारतीय संस्कृति में वैकुंठ एकादशी को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को भगवान विष्णु के अद्वितीय रूप का दर्शन करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का सुनहरा अवसर माना जाता है।

वैकुंठ एकादशी का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

  • मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • पापों का नाश होता है।
  • भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
  • मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है
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व्रत की विधि:
  1. जागरण एवं संगीत साधना: भक्त वैकुंठ एकादशी की रात्रि में जागरण करते हैं और भगवान विष्णु के गुणगान, भजन गायन, और संगीत साधना में लगे रहते हैं।
  2. नियमित पूजा: भगवान विष्णु की मूर्ति या उनकी पिताम्बर संस्कृति में पूजी जाती है। पुराने ग्रंथों का पाठ, आरती, और पुष्पांजलि के साथ नियमित पूजन किया जाता है।
  3. व्रत आहार: व्रती भक्त इस दिन नींबू पानी और फलों के अलावा कुछ भी नहीं खाते हैं। यह उनकी साधना और शुद्धि को बढ़ावा देने का एक तरीका है।
अतिरिक्त विधि :

वैकुंठ एकादशी व्रत की विधि इस प्रकार है:

  • दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन करें।
  • एकादशी तिथि को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु को फल, फूल, और मिठाई का भोग लगाएं।
  • भगवान विष्णु की आरती करें।
  • दिन भर व्रत रखें और भगवान विष्णु का नाम जपें।
  • द्वादशी तिथि को सुबह स्नान करने के बाद भोजन करें।
वैकुंठ एकादशी की कथा :

वैकुंठ एकादशी की कथा इस प्रकार है:

एक बार भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को उनके पिता हिरण्यकश्यप ने मारने का प्रयास किया। प्रह्लाद भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा करने का वचन दिया।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को बचाया। अंत में, भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु बहुत क्रोधित थे। वे हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी शांत नहीं हुए। तब देवताओं ने भगवान विष्णु को शांत करने का प्रयास किया।

देवताओं ने भगवान विष्णु से क्षमा याचना की और उनसे प्रार्थना की कि वे शांत हो जाएं। भगवान विष्णु देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न हुए और उन्होंने शांत होने का वचन दिया।

भगवान विष्णु ने कहा कि वे कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शांत होंगे। इस दिन को वैकुंठ एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

समाप्ति:

वैकुंठ एकादशी हिन्दू समाज में एक विशेष आनंद भरा त्योहार है जो भक्तों को भगवान के साथ अद्वितीय संबंध स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन को विशेष भक्ति और आध्यात्मिकता के साथ बिताने से भक्तों का मानव जीवन प्रेरित होता है और वे उच्चतम आदर्शों की ओर एक कदम और बढ़ते हैं। इस पवित्र दिन को नियमित व्रत और पूजा-अर्चना के साथ मनाकर हिन्दू समाज अपने आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करता है और उत्तरायण की ओर अपने जीवन का मार्गदर्शन करता है।

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